एक काफी अच्छे लेखक थे। वे राजधानी गए।
एक समारोह में उनकी मुख्यमंत्री से भेंट हो गई। मुख्यमंत्री से उनका परिचय पहले से था।
मुख्यमंत्री ने उनसे कहा, ‘आप मजे में तो हैं। कोई कष्ट तो नहीं है?’
लेखक ने कह दिया, ‘कष्ट बहुत मामूली है। मकान का कष्ट।
अच्छा-सा मकान मिल जाए, तो कुछ ढंग से लिखना-पढ़ना हो।’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मैं चीफ सेक्रेटरी से कह देता हूं।
आपको मकान ‘अलॉट’ हो जाएगा।’
मुख्यमंत्री ने चीफ सेक्रेटरी से कह दिया कि अमुक लेखक को मकान ‘अलॉट’ करा दो।
चीफ सेक्रेटरी ने कहा, ‘यस सर।’
चीफ सेक्रेटरी ने कमिश्नर से कह दिया। कमिश्नर ने कहा, ‘यस सर।’
कमिश्नर ने कलेक्टर से कहा, ‘अमुक लेखक को मकान ‘अलॉट’ कर दो।’
कलेक्टर ने कहा, ‘यस सर।’ कलेक्टर ने रेंट कंट्रोलर से कह दिया। उसने कहा, ‘यस सर।’
रेंट कंट्रोलर ने रेंट इंस्पेक्टर से कह दिया। उसने भी कहा, ‘यस सर।’ सब बाकायदा हुआ।
पूरा प्रशासन मकान देने के काम में लग गया। साल डेढ़ साल बाद फिर मुख्यमंत्री से लेखक की भेंट हो गई।
मुख्यमंत्री को याद आया कि इनका कोई काम होना था। मकान ‘अलॉट’ होना था।
उन्होंने पूछा, ‘कहिए, अब तो अच्छा मकान मिल गया होगा?’
लेखक ने कहा, ‘नहीं मिला।’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘अरे, मैंने तो दूसरे ही दिन कह दिया था।’
लेखक ने कहा, ‘जी हां, ऊपर से नीचे तक ‘यस सर’ हो गया।
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